लेखनी प्रतियोगिता -20-Jun-2023... दान...
अश्वमेध यज्ञ....इस यज्ञ के बारे में हम सभी ने सुना होगा...। लेकिन इस यज्ञ के दौरान कुछ ऐसा हुआ जो आपको भी विचार करने पर मजबूर कर देगा....।
महाभारत काल में जब यह यज्ञ चल रहा था तो बड़े बड़े ऋषियों और महात्माओं को दान देने की प्रक्रिया चल रहीं थीं...।
इस यज्ञ में सभी वरिष्ठ पदाधिकारी यहां तक भगवान इन्द्र और श्रीकृष्ण तक साक्षात उपस्थित थे...।
दान देने की प्रक्रिया ओर अश्वमेध यज्ञ की पुर्णाहुतिकी पावन बेला थीं....।
तभी वहाँ उपस्थित सभी दिग्गजों और मंहतो का ध्यान एक गिलहरी पर गया....। एक गिलहरी जमीन पर बहुत देर से लोट पोट हो रही थीं.... ओर उससे भी ज्यादा ध्यान खिचने का कारण यह था की उस गिलहरी का आधा शरीर सोने का बना था ओर आधा शरीर सामान्य था...।
महाराज युधिष्ठिर के लिए यह बहुत आश्चर्य की बात थीं... ऐसी गिलहरी उन्होंने कभी नहीं देखी थीं...। वहां हवन करवा रहें पंडितों का ध्यान भी इस तरफ गया....। सभी बेहद हैरत में उसे लगातार देख रहें थे...। एक क्षण को तो हवन कार्यक्रम भी रोक दिया गया....।
जिज्ञासा वश महाराज युधिष्ठिर ने गिलहरी को समीप बुलाया ओर कहा :- यहां बैठे सभी गुणिजनो के मन में दो सवाल पनप रहे हैं.... पहला तो यह की तुम इतनी देर से जमीन में उलट पुलट क्यूँ हो रहीं हो..?
दूसरा यह की तुम्हारा आधा शरीर सोने का कैसे...?
महाराज युधिष्ठिर की बात सुन गिलहरी बोली :- महाराज.... मैं इतनी देर से यहाँ लोटपोट इसलिए हो रहीं हूँ.... ताकि मेरा बचा हुआ आधा शरीर भी सोने का बन जाए...।
ओर रहीं बात मेरे आधा शरीर सोने का कैसे तो वो इस प्रकार हैं की ....यहाँ आने से कुछ देर पहले मैं एक गरीब ब्राह्मण के घर के पास बने पेड़ से नीचे उतरी ओर वहां देखा की ब्राह्मण रोज की तरह भिक्षा लेकर घर आया... लेकिन आज भिक्षा में उसे सिर्फ कुछ चावल ही मिले थे...। वो और उसका परिवार चावल बनाकर खाने ही वाला था की एक भिक्षुक उनके घर भिक्षा लेने आया...। गरीब ब्राह्मण ने अपने हिस्से के चावल उनको खाने को दे दिए, लेकिन भिक्षुक का पेट अभी भी नहीं भरा था तो ब्राह्मण की पत्नी ने और फिर उसके बच्चे ने भी अपना भोजन उनको दे दिया...। भिक्षुक उनको दुआएँ देकर वहां से चला गया..। जिस जगह वो भिक्षुक भोजन कर रहा था.. वहां कुछ चावल के दाने गिर गए थे... सो मैं अपना पेट भरने वो दाने खाने आ गई.... जैसे ही मैं उस जगह पर आई.... मेरा आधा शरीर सोने का हो गया...। मैं वो चंद दाने खा ही रहीं थीं की मुझे पता चला यहाँ अश्वमेध यज्ञ चल रहा हैं...। लोगों को, राहगीरों को इस यज्ञ के बारे में बात करते हुए बहुत सुना था....। यहाँ इस यज्ञ में बहुत बड़े बड़े महात्मा, पंडित, महंत और खुद भगवान इंद्र भी उपस्थित हैं....। इससे पवित्र स्थान भला कौनसा होगा...। यहाँ आकर देखा तो यहाँ भी दान देने का कार्यक्रम चल रहा था...। इसलिए मैं यहाँ इतनी देर से लोटपोट हो रहीं हूँ....। ताकि मेरा आधा शरीर भी सोने का बन जाए....लेकिन मेरा सारा प्रयास विफल ही रहा.... मैं अभी भी सिर्फ आधी स्वर्ण काया वाली ही हूँ.....। ऐसा क्यूँ महाराज..!!
गिलहरी की बात सुन महाराज युधिष्ठिर समेट वहां उपस्थित सभी साधुजन, महंत, महात्मा, पंडित की गर्दन झुक गई....। किसी के पास भी गिलहरी की बात का जवाब नहीं था...।
दान सिर्फ करना या देना मायने नहीं रखता.... दान किस भाव से दिया गया हैं वो मायने रखता हैं...।
HARSHADA GOSAVI
17-Jul-2023 06:41 PM
Good
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Gunjan Kamal
24-Jun-2023 12:22 AM
👌👏
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Shnaya
23-Jun-2023 11:39 PM
V nice
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